The End

अंत


मैं नहीं कहता,
की यही होगा,
पर होगा कुछ इसी तरह
चला जायेगा कुछ, रह जायेगा कुछ
सोचते रह जायेंगे सब कुछ न कुछ
इस अंत की कल्पना भी ना की होगी
अंत सब कुछ अंत कर चला जायेगा

विलक्षण विभूतियाँ खोने लगेंगी
डर की अनुभूतियाँ होने लगेंगी
डरने लगेंगे ये मानव
जलने लगेगा ये सागर
इन्सान ही इन्सान को डारएगा
अंत सब कुछ अंत कर चला जायेगा


क्षितिज के पास न होगा
ये आसमा फिर कभी
रूठ जायेगा सागर फिर उजली धुप से
छनेन्गी न किरनें फिर कभी सूर्य की
की उन पर बादलों का पहरा न होगा
सूर्यास्त का नज़ारा कहीं खो जायेगा
अंत सब कुछ अंत कर चला जायेगा

बातें न होंगी फिर कभी चाँद की
क्योंकि चांदनी का भी निशाँ न होगा
निशा न रोशन होगी फिर कभी तारों से
की उस पर कालिमा की चादर होगी बिछी

वो समां न होगा रात्रि-विचरण का
रात ही ना होगी अख्हियाँ बिछाने को
सब इसी तरह कहीं खो जायेगा
अंत सब कुछ अंत कर चला जायेगा

सब कहते हैं बातें करो न अंत की
पर अंत ही तो रीत है जीवन की
इसे स्वीकारना ही सत्य है
क्यूंकि इससे अधिक न कुछ है न हो पायेगा
अंत सब कुछ अंत कर चला जायेगा
-अमृत भारद्वाज

Comments

  1. Reet nahi reeti. Reet ka arth hai khaali.Aapki kavita ne bahut impress kiya.

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